विश्व ग्लेशियर दिवस, 2026 फीफा वर्ल्ड कप, अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस

विश्व ग्लेशियर दिवस, 2026 फीफा वर्ल्ड कप, अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस, और अधिक

विश्व ग्लेशियर दिवस, 2026 फीफा वर्ल्ड कप, अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस, और अधिक

विश्व ग्लेशियर दिवस

संयुक्त राष्ट्र ने 21 मार्च को विश्व ग्लेशियर दिवस के रूप में नामित किया है, जिसे प्रस्ताव A/RES/77/158 के तहत घोषित किया गया। यह दिन 2025 को अंतरराष्ट्रीय ग्लेशियर संरक्षण वर्ष के साथ मिलकर ग्लेशियरों के महत्व को समझाने और जलवायु परिवर्तन से उनके सामने आने वाली चुनौतियों को सामने लाने के लिए मनाया जाता है। ग्लेशियर प्रकृति के ठंडे पहरेदार हैं, जो बर्फ के विशाल बहाव के रूप में पहाड़ों और मैदानों को आकार देते हैं। ये न सिर्फ जलवायु परिवर्तन के गवाह हैं, बल्कि ताजे पानी का भंडार भी हैं। ये पानी पीने, खेती और बिजली बनाने में मदद करता है, समुद्र के स्तर को संतुलित करता है और कई जीव-जंतुओं के लिए घर का काम करता है। लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण ये तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे पर्यावरण पर बुरा असर पड़ रहा है।

ग्लेशियर हमारे ग्रह के लिए बहुत जरूरी हैं। ये ताजे पानी का करीब 69% हिस्सा अपने अंदर रखते हैं, जो नदियों और झीलों को पानी देता है। इनके पिघलने से समुद्र का स्तर बढ़ रहा है, जिससे तटीय इलाकों को खतरा है। साथ ही, ये जलवायु परिवर्तन को समझने का एक तरीका भी हैं। लेकिन बढ़ता तापमान इनके लिए मुसीबत बन गया है। इससे पानी की कमी, समुद्र स्तर में बढ़ोतरी, बाढ़ और भूस्खलन जैसी आपदाएँ बढ़ रही हैं। जैव विविधता पर भी इसका असर पड़ रहा है, जिससे खाद्य श्रृंखला प्रभावित हो रही है। ग्लेशियरों पर निर्भर खेती, पर्यटन और बिजली उत्पादन जैसे क्षेत्रों को भी नुकसान हो रहा है।

इन समस्याओं से निपटने के लिए दुनिया को तेजी से कदम उठाने होंगे। ग्रीनहाउस गैसों को कम करना, नवीकरणीय ऊर्जा का इस्तेमाल बढ़ाना, ग्लेशियरों से जुड़ी नदियों की देखभाल करना और सख्त नीतियाँ बनाना जरूरी है। साथ ही, विश्व ग्लेशियर दिवस जैसे आयोजन लोगों को जागरूक करने में मदद करते हैं। 2025 को अंतरराष्ट्रीय ग्लेशियर संरक्षण वर्ष घोषित किया गया है, ताकि वैज्ञानिक शोध, वैश्विक सहयोग और संरक्षण के लिए संसाधन जुटाए जा सकें। यह सब ग्लेशियरों को बचाने और उनके बदलते हालात से निपटने के लिए सामुदायिक कोशिशों को बढ़ावा देगा।

2026 फीफा वर्ल्ड कप

जापान ने 2026 फीफा वर्ल्ड कप के लिए अपनी जगह पक्की कर ली है और मेजबान देशों (अमेरिका, कनाडा, मेक्सिको) के बाद क्वालीफाई करने वाली पहली टीम बन गया है। 20 मार्च 2025 को सैतामा स्टेडियम में बहरीन को 2-0 से हराकर जापान ने यह उपलब्धि हासिल की। दूसरे हाफ में दाइची कामाडा और टेकफुसा कुबो ने गोल करके टीम को जीत दिलाई। इसके साथ ही जापान लगातार आठवीं बार विश्व कप में खेलेगा। जापान के कोच हाजीमे मोरियासु ने खिलाड़ियों और प्रशंसकों का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि टीम और बेहतर करने की कोशिश करेगी। वहीं, बहरीन के कोच द्रागन तलाजिक ने जापान की तारीफ की और कहा कि वे विश्व कप में शानदार प्रदर्शन करेंगे।

इसके अलावा, ऑस्ट्रेलिया ने इंडोनेशिया को 5-1 से हराकर अपनी उम्मीदें मजबूत कीं, जबकि दक्षिण कोरिया ने ओमान के खिलाफ 1-1 का ड्रॉ खेला, लेकिन अपने ग्रुप में टॉप पर बना रहा। जापान की जीत में दाइची कामाडा और टेकफुसा कुबो के गोल अहम रहे। यह टूर्नामेंट 48 टीमों का होगा, और जापान ने अपने ग्रुप में शीर्ष दो स्थानों में जगह बनाई। ऑस्ट्रेलिया के लिए मार्टिन बॉयल, निशान वेलुपिल्लई, जैक्सन इरविन और लुईस मिलर ने गोल किए, जबकि दक्षिण कोरिया के ह्वांग ही-चान और ओमान के अली अल-बुसैदी ने अपने-अपने गोल बनाए।

एशिया में क्वालीफाइंग का तरीका यह है कि तीन ग्रुप्स में से हर ग्रुप की टॉप दो टीमें सीधे विश्व कप में जाएँगी। तीसरे और चौथे नंबर की टीमें प्लेऑफ में और दो स्थानों के लिए लड़ेंगी। दक्षिण कोरिया के कप्तान सोन ह्यून-मिन ने कहा कि हर मैच मुश्किल होता है और ओमान जैसे ड्रॉ से हमें सीखना चाहिए। जापान का क्वालीफाई करना इसलिए खास है, क्योंकि मेजबान देशों के बाद वह पहली टीम है जो इस टूर्नामेंट में जगह बना चुकी है।

अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस

21 मार्च 2025 को दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय वन दिवस मनाया जाएगा। इस बार का विषय “वन और भोजन” है, जो यह बताता है कि जंगल हमारे खाने और पोषण से कितने गहरे जुड़े हैं। जंगल हमारे ग्रह के लिए जीवनदायी हैं। ये ऑक्सीजन देते हैं, खाना मुहैया कराते हैं, दवाइयाँ उपलब्ध कराते हैं और करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी चलाते हैं। जंगल फल, बीज, जड़ें और जंगली जानवरों का मांस जैसे संसाधन देते हैं, जो खासकर आदिवासी और गाँव के लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा का आधार हैं। संयुक्त राष्ट्र ने इस दिन को इसलिए शुरू किया, ताकि लोग जंगलों की अहमियत समझें और इन्हें बचाने के लिए कदम उठाएँ।

इस दिन की शुरुआत 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने की थी। हर साल एक नया विषय चुना जाता है, जो जंगलों को सहेजने की कोशिशों को प्रोत्साहित करता है। भारत में जंगल हमारी संस्कृति, अर्थव्यवस्था और जैव विविधता का बड़ा हिस्सा हैं। इन्हें बचाना सिर्फ पर्यावरण की जरूरत नहीं, बल्कि हमारी जिम्मेदारी भी है। भारत सरकार ने कई कदम उठाए हैं, जैसे राष्ट्रीय कृषि वानिकी नीति (2014), जो खेती और पेड़ों को साथ लाकर मिट्टी को बेहतर करने और किसानों की कमाई बढ़ाने का काम करती है। इसके लिए अच्छे पौधे, शोध और बाजार का सहारा दिया जाता है।

ग्रीन इंडिया मिशन भी एक बड़ी पहल है, जो जंगल बढ़ाने, जैव विविधता बचाने और जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए काम करता है। इसका लक्ष्य 5 मिलियन हेक्टेयर में जंगल बढ़ाना और 30 लाख परिवारों की जिंदगी बेहतर करना है। इसके अलावा, वन अग्नि रोकथाम योजना जंगलों को आग से बचाती है, और प्रधानमंत्री वन धन योजना आदिवासियों को जंगल की उपज से कमाई का मौका देती है। ये सारी कोशिशें जंगलों को बचाने और लोगों की जिंदगी सुधारने के लिए हैं।

दिल्ली के मोबाइल डेंटल क्लीनिक

21 मार्च 2025 को दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री पंकज कुमार सिंह ने छह मोबाइल डेंटल क्लीनिक की शुरुआत की। ये क्लीनिक दिल्ली के लोगों को मुफ्त में दाँतों की देखभाल की सुविधा देंगे। दिल्ली सरकार और मौलाना आज़ाद इंस्टीट्यूट ऑफ डेंटल साइंसेज (MAIDS) मिलकर इन्हें चलाएंगे। इनका मकसद खास तौर पर झुग्गी-झोपड़ियों और गरीब इलाकों में रहने वालों तक अच्छी दंत चिकित्सा पहुँचाना है। ये मोबाइल यूनिट्स नए जमाने के उपकरणों से लैस हैं, जैसे डेंटल चेयर, पोर्टेबल एक्स-रे मशीन, अल्ट्रासोनिक स्केलर और साफ-सफाई के लिए स्टेरलाइज़ेशन की मशीनें। विश्व ओरल हेल्थ डे के मौके पर शुरू हुई इस योजना के तहत मुफ्त फ्लोराइड ट्रीटमेंट, सीलेंट्स और छोटी-मोटी दाँतों की मरम्मत की सुविधा मिलेगी, ताकि दिल्ली में हर किसी को दाँतों की बेहतर देखभाल मिल सके।

ये क्लीनिक शहर भर में घूमेंगे और जरूरतमंद इलाकों में रुककर लोगों की मदद करेंगे। स्वास्थ्य मंत्री ने इसे शुरू करने के लिए MAIDS से हाथ मिलाया, ताकि सस्ती और आसान दंत चिकित्सा हर कोने तक पहुँचे। ये यूनिट्स आधुनिक हैं और इनमें वो सारी चीजें हैं, जो दाँतों की बुनियादी समस्याओं को ठीक करने के लिए चाहिए। इस पहल से दिल्ली के लोगों को न सिर्फ इलाज मिलेगा, बल्कि मौखिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता भी बढ़ेगी।

डॉ. वी. आई. माथन की पुस्तक

20 मार्च 2025 को चेन्नई में क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज (CMC) वेल्लोर के पुराने निदेशक डॉ. वी. आई. माथन ने एक खास किताब “टू द सेवन्थ जनरेशन: द जर्नी ऑफ क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज वेल्लोर” का विमोचन किया। इस मौके पर पहली कॉपी मौजूदा निदेशक डॉ. विक्रम मैथ्यू को दी गई, जो एक हेमेटोलॉजिस्ट हैं। दूसरी कॉपी डॉ. वी. वी. बाशी को मिली, जो SIMS, वडपलानी में इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियक डिजीज के निदेशक हैं। यह किताब CMC वेल्लोर की पूरी कहानी बयान करती है और इसके संस्थापक आइडा स्कडर के सपनों और काम को सामने लाती है।

डॉ. माथन ने CMC में 50 साल तक सेवा दी और वो उन चंद लोगों में से हैं, जिन्होंने आइडा स्कडर को खुद देखा और जाना। यह किताब CMC के इतिहास और इसके एक बड़े मेडिकल संस्थान बनने की यात्रा को बताती है। वहीं, डॉ. बाशी 1980 में CMC से जुड़े थे और वहाँ 12 साल तक रहे। इस दौरान उन्होंने सर्जरी में अपने करियर को नया आकार दिया। CMC की पढ़ाई, किताबें लिखने और प्रैक्टिकल ट्रेनिंग पर जोर ने उन्हें बहुत कुछ सिखाया। डॉ. बाशी ने यह भी बताया कि चिकित्सा अब पुराने तरीकों से एआई और मशीन लर्निंग की तरफ बढ़ रही है, लेकिन मरीजों से बात करना और उनका इतिहास जानना अभी भी सबसे जरूरी है।

विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस

21 मार्च 2025 को 14वां विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय, न्यूयॉर्क में डाउन सिंड्रोम इंटरनेशनल नेटवर्क द्वारा मनाया जाएगा। साथ ही, 20 से 22 मार्च तक संयुक्त राष्ट्र, जिनेवा में भी कई कार्यक्रम होंगे। डाउन सिंड्रोम एक जेनेटिक हालत है, जिसमें क्रोमोसोम 21 की एक अतिरिक्त कॉपी होती है। इससे शरीर, दिमाग और विकास में कुछ चुनौतियाँ आती हैं। हर इंसान पर इसका असर अलग होता है, जैसे सीखने का तरीका, सेहत और चेहरे की बनावट बदल सकती है। इसका सही कारण पता नहीं, लेकिन यह हर 1,000-1,100 बच्चों में से 1 को प्रभावित करता है। हर साल दुनिया में 3,000 से 5,000 बच्चे इसके साथ पैदा होते हैं।

संयुक्त राष्ट्र ने दिसंबर 2011 में इसे 21 मार्च को विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस घोषित किया था। 2012 से यह दिन लोगों को इसके बारे में जागरूक करने के लिए मनाया जाता है। इसका मकसद है कि डाउन सिंड्रोम वाले लोगों को समाज में शामिल करने, उनकी सेहत, पढ़ाई और नौकरी के मौके बढ़ाने और उनके अधिकारों की बात करना। संयुक्त राष्ट्र सभी देशों, संगठनों और लोगों से कहता है कि वे इस दिन को खास तरीके से मनाएँ। डाउन सिंड्रोम वालों को शिक्षा, स्वास्थ्य और समाज में मदद चाहिए, ताकि वे अच्छी जिंदगी जी सकें। परिवार उनकी देखभाल में बड़ी भूमिका निभाते हैं, लेकिन कई जगहों पर सही नीतियाँ और संसाधन नहीं हैं। सरकारों को चाहिए कि वे बेहतर सुविधाएँ दें और उनके हक की रक्षा करें।

खेलो इंडिया पैरा गेम्स 2025

खेलो इंडिया पैरा गेम्स 2025 का आयोजन 20 से 27 मार्च 2025 तक नई दिल्ली में तीन जगहों पर होगा। इस बड़े आयोजन से पहले केंद्रीय खेल मंत्री डॉ. मनसुख मंडाविया ने जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में इसका गाना लॉन्च किया, जिसके बोल हैं “खेलेगा खेलेगा मेरा इंडिया, जीतेगा जीतेगा मेरा इंडिया”। खेल राज्य मंत्री रक्ष निखिल खडसे ने शुभंकर ‘उज्ज्वला’ को पेश किया, जो गौरैया से प्रेरित है और पैरा-एथलीटों की हिम्मत व जज्बे को दिखाता है। यह दिल्ली की चमक और जोश को भी बयान करता है। पैरालंपिक समिति के अध्यक्ष देवेंद्र झाझरिया और स्वयम की संस्थापक स्मिनू जिंदल ने लोगो का अनावरण किया, जिसमें दिल्ली के बड़े स्थल दिखते हैं और समावेशिता का संदेश देते हैं।

इस बार 1,300 से ज्यादा पैरा-एथलीट छह खेलों में हिस्सा लेंगे: पैरा-आर्चरी, पैरा-एथलेटिक्स, पैरा-बैडमिंटन, पैरा-पावरलिफ्टिंग, पैरा-शूटिंग और पैरा-टेबल टेनिस। स्वर्ण पदक विजेता तीरंदाज हरविंदर सिंह और हाई जंपर प्रवीण कुमार जैसे बड़े नाम भी शामिल होंगे। यह आयोजन जम्मू-कश्मीर में हुए खेलो इंडिया विंटर गेम्स 2025 के बाद हो रहा है। खेल जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, इंदिरा गांधी स्टेडियम और डॉ. कर्णी सिंह शूटिंग रेंज में होंगे। यह पैरा-एथलीटों के लिए अपनी काबिलियत दिखाने का शानदार मौका है।

भारत की 1975 हॉकी विश्व कप जीत की 50वीं सालगिरह

18 मार्च 2025 को नई दिल्ली के शिवाजी स्टेडियम में भारत की 1975 हॉकी विश्व कप जीत की स्वर्ण जयंती के मौके पर ‘मार्च ऑफ ग्लोरी’ नाम की किताब का विमोचन हुआ। इस किताब को हॉकी के मशहूर इतिहासकार के. अरुमुगम और पत्रकार एरोल डी’क्रूज़ ने मिलकर लिखा है। यह किताब 15 मार्च 1975 को कुआलालंपुर में भारत की शानदार जीत की कहानी बयान करती है। इसमें बड़े मैचों की पूरी जानकारी, खिलाड़ियों के विचार और 250 से ज्यादा दुर्लभ तस्वीरें हैं। यह किताब भारत की मुश्किल वापसी, अर्जेंटीना से हार और फिर सेमीफाइनल व फाइनल में रोमांचक जीत को बखूबी दिखाती है।

इस मौके पर हॉकी इंडिया के अध्यक्ष दिलीप टिर्की, 1975 की जीत के हीरो एच. जे. एस. चिमनी और अशोक कुमार (जिन्होंने फाइनल में गोल किया था), ओलंपियन हरबिंदर सिंह, जफर इकबाल, विनीता कुमार और वन थाउज़ेंड हॉकी लेग्स (OTHL) के 300 युवा खिलाड़ी शामिल हुए। दिलीप टिर्की ने कहा कि भारतीय हॉकी के इतिहास पर बहुत कम किताबें हैं। उन्होंने इस किताब को हॉकी प्रेमियों के लिए खास बताया, जो न सिर्फ उस सुनहरे दौर को सहेजती है, बल्कि नई पीढ़ी को प्रेरणा भी देती है। यह आयोजन भारत की उस ऐतिहासिक जीत को याद करने और हॉकी की विरासत को आगे बढ़ाने का एक शानदार मौका था।

विश्व कविता दिवस 2025

हर साल 21 मार्च को विश्व कविता दिवस पूरी दुनिया में मनाया जाता है, ताकि कविता को एक ऐसी कला के रूप में पहचान मिले जो हर किसी की भावनाओं को जोड़ती हो। यूनेस्को ने 1999 में इसे शुरू किया था, जिसका मकसद कविता को पढ़ने, लिखने, छापने और सिखाने को बढ़ावा देना है। यह दिन कविता को संस्कृति को बचाने और शांति फैलाने का एक मजबूत जरिया मानता है। 2025 की थीम है “शांति और समावेशन के लिए कविता का सेतु”, जो यह दिखाती है कि कविता अलग-अलग संस्कृतियों और लोगों को जोड़कर आपसी समझ और सम्मान बढ़ा सकती है।

यूनेस्को ने 1999 में अपनी 30वीं महासभा में 21 मार्च को यह दिन चुना। पहले 15 अक्टूबर को, जो रोमन कवि वर्जिल का जन्मदिन था, कविता दिवस मनाया जाता था, लेकिन अब 21 मार्च को यह दुनिया भर में एकजुटता के साथ सेलिब्रेट होता है। इसका उद्देश्य है कि नए कवियों को मौका मिले, पुरानी बोलचाल की परंपराओं को जिंदा रखा जाए, अलग-अलग भाषाओं में कविताएँ छपें और गरीब या कम सुने जाने वाले समुदायों की आवाज़ सामने आए। 2025 में यह दिन शांति और एकता पर फोकस करेगा। स्कूल, साहित्यिक समूह और सांस्कृतिक संगठन कविता पाठ, वर्कशॉप और चर्चाएँ करेंगे, ताकि लोग कविता की ताकत को समझें।

यूनेस्को कविता को बढ़ाने के लिए कई काम करता है, जैसे स्कूलों में इसे पढ़ाई का हिस्सा बनाना, विश्व पुस्तक राजधानी जैसी पहल करना और साहित्यिक शहरों का नेटवर्क तैयार करना। यह संयुक्त राष्ट्र के लक्ष्यों से भी जुड़ा है, जैसे अच्छी शिक्षा देना, असमानता कम करना और शांति को बढ़ावा देना। विश्व कविता दिवस 2025 को आप कविता पढ़कर, लिखकर, ऑनलाइन शेयर करके या सार्वजनिक जगहों पर प्रदर्शन करके मना सकते हैं। यह कविता की ताकत को पहचानने और इसे हर कोने तक पहुँचाने का मौका है, जो न सिर्फ साहित्य को समृद्ध करता है, बल्कि समाज को भी जोड़ता है।

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